कहने को तो आज़ाद है
पर घर में ही बंद पड़ी है
खुद के लिए कुछ सोचती नहीं
पर अपनो के लिए हर दम खड़ी है
लाज, शर्म, संस्कृति के गहनों से वो
हर वक़्त ही बस दबी पड़ी है
खुद के लिए हो बात तो
शायद माफ भी कर दे
पर जिन्हें समझती है अपना
उनके लिए हमेशा लड़ी है
माँ, बीवी, बहन, बेटी या
फिर बस सखी हो
हर रिश्ते में ही ये अव्वल सबसे बड़ी है
सूंदर, चंचल, चपल या सादी
हर रूप में इसकी सुंदरता बड़ी है
कहने को तो एक नारी है ये
पर जीती-जगती एक देवी खड़ी है

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