जो मेरा नहीं मुझे उससे प्यार क्यूँ है।
मैं जनता हूँ वो लोटकर कभी नहीं आयेगा,
मुझे फिर भी उसी का इंतज़ार क्यूँ है,
काश वो एक बार मुस्कुरा कर मिल जाये मुझे,
बस ये ही सपना निगाहों में क्यूँ है।
जिसने कद्र नहीं की कभी मेरे एक आंसू की भी,
बस उसकी ही ख़ुशी मेरी दुआओं में क्यूँ है।
कुछ भी तो नहीं है उसमें ख़ास,
फिर मेरी धडकनों में बस वो ही क्यूँ है।
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