Tuesday, March 9, 2021

दोस्ती और प्रेम


दोस्ती और प्रेम हमारे जीवन में दोनो ही बहुत मायने रखते है। लेकिन ये दोनो कभी भी सबके लिये समान्तर नहीं रह सकते। लोगो के लिये प्यार हमेशा ही दोस्तो से ऊपर रहा है। सबको ये ही लगता है की जितना हम प्यार में कर सकते हैं इतना लोग दोस्ती में नहीं कर सकते और शायद वो अपनी जगह सही भी हैं क्युकी वो दोस्ती में इतना नहीं कर सकते तो उनके लिये कोई करे तो उन्हे ये ही लगता है की इनका कोई स्वार्थ ही होगा वर्ना इतना कौन करता है। लेकिन अपवाद हर जगह हैं और मैं इतना भी जनता हूँ की ऐसा सिर्फ मैं अकेला नहीं हूँ। बस मुझे ऐसे लोग अभी तक नहीं मिले हैं। 

मुझमें भी शायद कोई गड़बड़ है या कहूँ की मेरी सोच औरो से बहुत अलग है। मैं जिन्हे सिर्फ जानता हूँ मैं उनके लिये भी इतना कर सकता हूँ जितना लोग प्यार में भी नहीं करते तो सोचो जिन्हें मैं जिन्हे अपना मानता हूँ मैं उनकी खुशी के लिये किस हद तक जा सकता हूँ ये अनुमान लगना भी मुस्किल है। यहाँ मेरा भी थोड़ा स्वार्थ है, मैं बदले में बस विश्वास, थोड़ा वक़्त और उनके जीवन में अपनी अहमियत चाहता हूँ। पर ये सब बहुत कीमती चीजे हैं सबसे इन्हे पाने की उमीद नहीं की जा सकती। मेरे साथ सबसे बड़ी दिक्कत ये है की जिसे मैं अपना मानता हूँ उनका दुःख मुझे अपने अंदर महसूस होता है।  मैं चाह कर भी उनके दुःख को अपने अंदर से निकल नहीं पाता।  मैं उन लोगो को छोड़ नहीं पाता, मेरे दिमाग में बार बार बस ये घूमता रहता है की वो दुखी हैं।  पर इतना किसी के लिए नहीं सोचना चाहिए और ना ही इतना करना चाहिए क्युकी लोगो को इसकी जरुरत नहीं है वो अपना ध्यान खुद रख सकते हैं, सबको ईश्वर ने दिमाग दिया है वो अपना अच्छा बुरा सोच सकते हैं, और सच तो ये ही है की उन्हें आपकी जरुरत होती भी नहीं हैं क्युकी वो अपनी ज़िन्दगी में उन लोगो को चाहते हैं जिन्हे वो अपना मानते या जिनसे वो प्यार करते हैं।  आप किसी के लिए क्या करते है या अपने किसी के लिए क्या किया है ये कोई मायने नहीं रखता।  मायने ये रखता है की जिससे आप प्यार करते है वो आपके लिए कितना कर रहा है।  जिससे आप प्यार करते है उसका थोड़ा सा कुछ करना भी आपके लिए जहाँ भर के करने से ज्यादा है।  जब आप किसी के लिए बिना स्वार्थ के इतना करते हैं तो सबसे पहले ये ही सवाल आता है की क्यों कर रहा है ये इतना ? क्या चाहिए इसे ? जरूर कोई स्वार्थ होगा।  उस वक़्त आपने जो किया वो सब गलत साबित हो जाता है क्युकी दोस्ती में कोई इतना नहीं करता।  बदले में हमें वापिस क्या मिलता है ? बस दुःख और तिरस्कार।  मुझे भी समझना चाहिए सबकी अपनी सोच है, सब अपना सोच सकते हैं।  मुझे सीखना होगा लोगो को उनके हाल पर छोड़ना, पर क्या मैं ऐसा बन पाऊंगा ?

लोग हमारे बारे में अच्छा सोचते हैं या बुरा, या वो हमसे दूर हो गए हैं तो क्या हमें इसका दुःख होना चाहिए ? सायद नहीं क्युकी हमने वो किया जो हमें ठीक लगा और उन्होंने वो किया जो उन्हें ठीक लगा।  आखिर हमारा क्या गया ? हमें ख़ुशी ही होना चाहिए की हमने जितना भी किया अच्छा ही किया, कुछ बुरा नहीं किया, जितने वक़्त भी रहे बस उन्हें खुश रखने की कोशिश की तो इसमें दुःख होने वाली क्या बात हैं और रही बात किसी को खोने की तो हमारा क्या गया एक ऐसा इंसान जिसे हमारी कोई अहमियत नहीं थी, जो हमसे ढंग से बात तक ना करता था, जिसे हमारी कोई फ़िक्र नहीं थी, जिसे हमारा दुःख कभी दिखाई ना दिया, जिसे हमारे होने ना होने से फर्क ही ना पड़ता था, जो हमसे दूर रह कर भी बहुत खुश है।  और ये तो अच्छी बात है ना की वो खुश है ये ही तो हमारी हमेशा कोशिश रहती थी की वो खुश रहे और वो खुश हैं।  इंसान गलती कर सकता है लेकिन ईश्वर अच्छा करने का सिला बुरा नहीं देगा।  इसका मुझे पूरा विश्वास है।   

आध्यात्मिक अध्यन किया जाए तो ये सब हमारे पिछले जन्म का बकाया होता है।  सायद मैं पिछले जन्म में बहुत ही बुरा इंसान रहा होऊंगा तभी मैंने अपने ऊपर इतना कर्जा कर रखा है, मैं बस अपने पिछले जन्म का कर्जे ही उतार रहा हूँ।  हम जिन भी लोगो से इस जन्म में मिलते है बेसक कुछ वक़्त के लिए ही मिले, उन सबसे हमारा कुछ न कुछ बकाया होता है जो इस जन्म में चुकाना है।  मैंने अपने जीवन में जितना भी लोगो के लिए किया और बदले में बेसक मुझे कुछ ना मिला हो सायद वो पिछले जन्म का बकाया ही था तो चुका दिया।  पर कहते हैं की अगर हमारे कर्म पूरे ना हुए हों तो अगले जन्म में हमें फिर से अपना कर्जा चुकाना पड़ेगा और उन्ही लोगो से फिर से मिलना पड़ेगा जिनसे इस जन्म में मिले हैं।  मैं ईश्वर से बस ये ही प्रार्थना करूँगा की बस जो भी हो किसी के साथ मेरा इस जन्म में ही पूरा हो जाये।  पर इस बात का पता कैसे चले की मैंने इस जन्म में अपना कर्जा चुकाया है या कर्जा चढ़ाया हैं?

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