लाख संभल कर मैं,
हर वक़्त चलता रहा
वक़्त मेरे हाथ से फिर भी,
रेत की तरह फिसलता रहा
क्या हुआ, कब हुआ, क्यों हुआ
बस यही मेरे जहन में,
हमेशा चलता रहा
क्या है राबता उससे मेरा,
क्यों उसके लिए,
मन मेरा मचलता रहा
रंज में गुजरती है जब शाम मेरी
रात भर मैं बस फिर,
इसी तरह जलता रहा
उम्मीद की किरण,
जब मैं लेकर चलता हूँ
तूफान में भी दिया मेरा,
बस यूँ ही फिर जलता रहा
हज़ार तूफां आये समुन्द्र में तो क्या
'साहिल' तो बस लहरो का,
इंतेज़ार ही करता रहा
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