Thursday, July 8, 2010

रिश्ते

हमें सबसे ज्यादा दुःख शायद रिश्तो को लेकर ही होता है, और खासकर उन रिश्तों को लेकर जो हम खुद बनाते है। जब हम रिश्ते बनाते है तो बहुत विश्वाश होता है दूसरे पर हम सोचते हैं की हम जितना उसके लिए करें वो भी हमारे लिए उतना ही करे, या कहूँ उतना सही पर उसके दिल में हमारे लिए फीलिंग जरूर रहे। पर हकीकत कुछ और ही कहती है, यहाँ हम कितने भी सचे रिश्ते बना ले पर दूसरों से उम्मीद करनी बेकार है, क्यूंकि हम किसी के लिए कितना भी कर ले उसके दिल में जगह नहीं बना सकते क्यूंकि उनके दिल में तो वो रहते हैं जिनसे वो रिश्ता बनाते हैं, और शायद दुखी वो भी रहते हैं क्यूंकि उन्हें भी अपने बनाये रिश्ते से दुःख ही रहता है। आखिर हम एक तरफ के रिश्ते बनाते ही क्यूँ हैं क्या सारी गलती हमारी ही होती है, क्या जो हम दूसरों पर विश्वाश करते हैं वो बस हमारी ही सोच होती है। शायद सारी गलती हमारी ही होती है क्यूंकि हमें उनसे रिश्ता बनाना चाहिए जो हमसे रिश्ता बनाना चाहते हों। जो हमसे रिश्ता बनाना चाहते हैं वो हमें कभी धोखा नहीं देंगे और हम उन्हें धोखा दे इतना तो हम कर ही सकते हैं। अगर रिश्ते में दोनों तरफ बराबर फीलिंग हों तो शायद वो रिश्ता सबसे ज्यादा ख़ुशी देने वाला होगा। पर ये सिर्फ खुवाब की बातें हैं ऐसा रिश्ता बनाया ही नहीं जा सकता जिसमें दुःख हों। रिश्ते ही दुःख की असली वजह होते हैं। क्या करना है ऐसे रिश्तो का जिन्हें बना कर भी दुःख हो और जिन्हें तोड़ कर भी दुःख हो। काश मेरे अन्दर की फीलिंग को कोई तो समझ पाए और रिश्तो की असली एहमियत को समझे, रिश्ते वो ही नहीं होते जो हम बनाते हैं, रिश्ते वो भी होते हैं-जो हमसे बनाते हैं, और शायद वो रिश्ते ज्यादा अच्छे होते हैं जो हमसे बनाये जाते हैं की वो जो हम बनाते हैं।

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