मुझे उस शख्स से इतना प्यार क्यों है
उस पर खुद से भी ज्यादा ऐतबार क्यों है
जब वो बसी ही है मेरे दिल के हर कोने में
फिर धड़कने उससे मिलने को बेक़रार क्यों है
यूँ तो अकेले भी कट ही जाता है ये तन्हा सफ़र
फिर उसके साथ चलने का मुझे ऐतबार क्यों है
जनता हूँ वो मेरे मुकददर में ही नहीं हैं
फिर भी बस एक उसी का इन्तेजार क्यों है
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