Friday, December 31, 2021

ना मैं तुझे याद करुँ


ना मैं तुझे याद करुँ, ना तुझे मैं कभी याद जाऊँ
खुदा करे की तू मुझे भूल जाये, मैं तुझे भूल जाऊँ
बस अब बहुत हुआ ये तमाशा तेरी बेरुखी का
अब ना मेरा दिल दुखाये तू, और ना मैं तेरा दिल दुखाऊँ
दिल पर रखकर पत्थर कुछ इस तरह किया किनारा तुझसे
जिस जगह हो तेरा घर उस गली में भी ना जाऊँ
बहुत चुभता था ना तेरी नजरों में कभी 'साहिल'
तुझे तो अब मैं कभी ख्वाबों में भी नज़र ना आऊँ

Monday, October 4, 2021

रिश्तो की उम्र

जिस तरह हर जीव, इन्सानो या किसी भी चीज़ की उम्र होती है उसी तरह हर रिश्ते की भी एक उम्र होती है और ये प्रकृति का नियम है की जो बना है उसे खत्म भी होना तय है। जैसे इन्सान की मृत्यू कभी भी हो जाती है। कभी अचानक, कभी उम्र पूरी करने के बाद तो कभी शुरु होने से पहले ही, उसी प्रकार रिश्तों की भी उम्र होती है ये भी कभी अचानक खत्म हो जाते हैं तो कभी आपने सभी कर्म और जरूरते पूरी करके तो कभी शुरु होने से पहले ही खतम हो जाते हैं। गलती तो हम लोगो की है जो हम ये मान लेते है की ये रिश्ता उम्र भर चलेगा, पर हमें समझना चाहिये की हर चीज़ की उमर भी अलग होती है। इन्सान की उम्र और रिश्तो की उम्र अलग अलग है।

अगर आप किसी रिश्ते के खत्म होने से दुखी है और आपको आपने दुख से निकलना है तो आपको खुद को ये समझना होगा की ठीक है हमारे रिश्ते की बस इतनी ही उमर थी, ना सामने वाला बन्दा गलत था और ना हम गलत है बस रिश्ते की उम्र पूरी हो गयी थी हम सब यहाँ एक दूसरे के कर्जदार हैं और हमें उस इन्सान को माफ करना होगा। कहते है इस जन्म में आप जिससे भी मिलते हैं उसका आपके साथ कुछ पिछ्ले जन्म का कर्जा होता है। या तो वो कर्जा उतरा है या फिर चढ़ गया है और अगर चढा है तो याद रखना अगले जन्म में फिर हम उनसे टकरायेंगे और इस बार जो उन्होने आपके साथ किया है या जो आपने उनके साथ किया हो वही आपको अगले जन्म में मिलेगा। तो सदा ये याद रखना की सबके साथ अच्छा ही करो और आपके व्यवहार से किसी को दुख ना पहुंचे क्युकी जब आप अच्छा करते हो तो आप अपना कर्जा या तो उतारते हो या फिर चढा देते हो और अगर उतारते है तो आप अब उस चक्र से मुक्त हो गये और अगर चढा है तो खुश रहो की वही आपको आगे वापिस मिलेगा भी।

तो जिसने भी आपके साथ बुरा किया या दुख पहुंचाया हो उसे माफ करो और ये सोचो की उसकी गलती नहीं थी बस हमारे रिश्ते की इतनी ही उमर थी। और दुआ करो की अब जो भी हुआ वो कर्जा पूरा हो गया हो और अब किसी के साथ कोई कर्जा ना हो ।



तो सदा खुश रहो।

Wednesday, August 4, 2021

तराशो खुद को

एक सड़क के किनारे पड़ा पत्थर हमेशा ठोकरे खाता है वहीं एक मंदिर में रखा पत्थर पूजा जाता है तो क्या फर्क होता है एक सड़क के किनारे पड़े पत्थर में और एक मंदिर में रखे पत्थर में?
 
जी हाँ, सिर्फ तराशने का फर्क होता है। 

जो जितना अच्छा तराशा जाता है उसकी उतनी ही कीमत बढ़ती जाती है।

हम सब पत्थर ही तो है। अब आप देखो, आपको कौन सा मुकाम हासिल करना है? और जो मुकाम हासिल करना है उसी हिसाब से खुद को तराशना होगा।
 
हाँ बिल्कुल, चोट तो बहुत खानी पड़ेगी, बहुत कुछ झेलना भी पड़ेगा, हो सकता है कई बार ऐसी चोट मिले जो आपको और चोट सहने के लिये मना कर दे पर याद रखो अगर अब ये सब झेल लिया तो जिंदगीभर ठोकर नहीं खानी पड़ेगी। पर अगर आप ये सब झेल जाते हो तो निश्चित ही एक दिन आप किसी मंदिर में अपनी शोभा बढा रहे होंगे।


तो बहुत सारी शुभकामनाएँ।

Friday, July 16, 2021

व्यवहार

हमारे पड़ोस में एक भैया रहते थे। वो बहुत अच्छे थे, हमेशा सबकी मदद करते थे, उनकी हमेशा ये ही कोशिश रहती थी की उनकी वजह से कभी किसी को दुख ना पहुंचे। कई बार तो ऐसा हुआ की उन्होने दूसरो की परेशानी दूर करने के लिये खुद के बारे में भी नहीं सोचा। हमेशा ही दूसरो के लिये जीते थे। फिर एक दिन, एक दुर्घटना में उनकी मृत्यू हो गयी। सभी अड़ोसी-पड़ोसी जमा हुए, सब बस ये ही बात कर रहे थे की बहुत अच्छा इंसान था, कभी किसी से कोई लडाई-झगड़ा नहीं किया, सबकी मदद करता था। क्रियाकर्म के बाद सब अपने-अपने घर लौट गए। बस एक-दो दिन चर्चे हुए पर फिर सब भूल गए, अब तो किसी को याद भी नहीं आती।


हमारे पड़ोस में फिर दूसरे भैया आये। वो बस खुद के बारे में सोचते थे। हमेशा खुद खुश रहते। मर्जी होती तो किसी की मदद कर देते नहीं तो साफ मन कर देते। वो मानते थे की पहले इंसान खुद खुश रहना चाहिये बाकी दुनिया बाद में है। किसी से इन्हे कोई खास मतलब नहीं था। किश्मत है कुछ समय बाद किसी बिमारी की वजह से इन भैया की भी मृत्यू हो गयी। सभी अड़ोसी-पड़ोसी फिर जमा हुए, अब भी सब बस ये ही बात कर रहे थे की अच्छा इंसान था बस सबसे पहले अपने बारे में सोचता था पर कभी बुरा नहीं किया किसी का, खुद में खुश रहता था। फिर क्रियाकर्म के बाद सभी अपने-अपने घर लौट गए। इन भैया के भी बस एक-दो दिन चर्चे हुए पर फिर सब भूल गए, अब तो कोई दोनो में से किसी को याद भी नहीं करता है।


कहानी तो खतम हो गयी पर एक सवाल रह गया। दोनो में से कौन सा ज्यादा सही रहा और कितना फर्क पड़ा दोनो के अलग-अलग व्यवहार से? और उससे भी जरुरी ये है की आप कौन से वाले के जैसे हो?


खुश रहें, मस्त रहें, व्यस्त रहें।

Tuesday, May 4, 2021

इश्क़ और यार



ईश्वर पता नहीं क्यों मेरे साथ हमेशा एक ही बात बार क्यों करता है।  बचपन से ले कर आज तक हमेशा सोचता था की कोई एक दोस्त हो जो मेरा दुःख समझे, मुझे दिल से अपना माने।  हम हमेशा साथ रहे जब तक ज़िंदा हैं।  लेकिन पता नहीं क्यों ईश्वर हमेशा मुझे दिखा देता है की मैं अकेला ही हूँ और अकेला ही रहूँगा।  मैं अकेला खुश रहता हूँ, अपने दुःख परेशानी अपने तक ही रखता हूँ।  लेकिन फिर जीवन में एक मोड़ आ जाता है कोई बहुत खास बन जाता है और मुझे लगने लगता है की ये ही वो दोस्त है जिसकी मुझे तलाश थी लेकिन फिर वही मैं जिसे भी अपना मान लूँ वो मुझसे हमेशा के लिए अलग हो जाता है।  मैं जिसे सबसे ज्यादा अपना मानता हूँ और सबसे ज्यादा वैल्यू देता हूँ वो ही मुझे एहसास करवा कर जाता है की मेरी उसकी ज़िन्दगी में कोई वैल्यू नहीं है।  और ऐसा मेरे साथ एक बार ही नहीं बल्कि कई बार हुआ है।  मैं अंदर से टूट सा जाता हूँ। और फिर सोचता हूँ की मैंने ऐसा रिश्ता बनाया ही क्यों जबकि मुझे पता था मेरे नसीब में ऐसा प्यार या दोस्त नहीं है।  कोई नहीं समझ सकता मेरे दर्द को।  हर कोई बस मुझे अपने मतलब के लिए दोस्त बनता है।  जब तक जरुरत रहती है मैं सबका खास रहता हूँ जब कोई और मिल जाता है तो मैं  दूध में से मक्खी की तरह निकल कर फेंक दिया जाता हूँ। 

मेरा रिश्तो से अब विश्वास उठ गया है कोई किसी का नहीं होता सब बस मतलब के होते है।  जब भी मैं सोचता हूँ की अब किसी पर विश्वास नहीं करूँगा तो कोई न कोई ज़िन्दगी में ऐसा आ जाता है जिसको देख कर लगता है की ये कभी धोखा नहीं देगा और न कभी साथ नहीं छोड़ेगा, पर कहते हैं ना, उम्मीद वहीँ टूटती हैं जहाँ बिलकुल भी उम्मीद नहीं होती।  ऐसा नहीं है की ये सब अचानक हो जाता है ये सब होने से पहले दिल और दिमाग में एक जंग शुरू हो जाती है, दिमाग सही दिखता है पर दिल को यकीन नहीं आता।  और दिल वही मानता है जो सामने वाला कह देता है क्युकी बहुत विश्वास होता है उस पर।  फिर दिमाग कहता है की चल देखते है उसके जीवन में हमारी क्या एहमियत है और कुछ वक़्त के लिए दूर होते है उससे, अगर उसकी नज़र में हमारी वैल्यू होगी तो वो मुझे रोकने के लिए कोशिश करेगा और फिर समझ आता है की किसी को हमारी कोई वैल्यू नहीं है, रोकना तो दूर की बात है कोई पूछता भी नहीं की हुआ क्या है।  और फिर दिल दुखी हो जाता है सोचता है  क्यों किसी पर इतना विश्वास किया, क्यों किसी को इतना अपना माना, क्यों किसी की इतनी फ़िक्र की, क्यों किसी को इतना प्यार किया।  


इश्क़ भी देखा है हमने, यार भी देखे हैं
कोई नहीं अपना बस मतलब के नाते हैं
जो दिल से निभाते हैं रिश्ते अक्सर,
वो खुद हमेशा अकेले रह जाते हैं
जो करते हैं भरोशा खुद से भी ज्यादा औरो पर
सिर्फ वही लोग जिंदगी में धोखा खाते हैं
जब भी हमने किसी अपने को आजमाया है
खुद को हर वक़्त बस अकेला पाया है
साहिल को बनाना है अब बस वक़्त के जैसा
एक बार जो गुजरा फिर वापिस ना आया है

Friday, March 19, 2021

बेवजह


हमारे पास जितनी वजह दुखी रहने की होती है शायद उतनी ही वजह खुश रहने की भी हो सकती हैं लेकिन हम अपनी आदतों से परेशान है क्युकी हमें खुशियाँ दिखाई नहीं देती।  हम अपने दुःख में इतना खो जाते हैं की छोटी-छोटी खुशियों को हम देख भी नहीं पाते।  हमारे पास खुश रहने की वजह तो बहुत होती हैं किन्तु कई बार कुछ ऐसा दुःख दिल में घर कर जाता है जिससे दिल पर एक बोझ सा रहने लगता है और हम चाह कर भी खुश नहीं रह पाते।  जीवन में अगर हमें खुश रहना है तो सबसे पहले हमें अपने दुःख की वजह को ख़तम करना होगा और दुःख को ख़तम करना आसान नहीं है तो मुश्किल भी नहीं है।  कोई भी दुखी इंसान किसी को ख़ुशी नहीं दे सकता क्युकी कोई किसी को वो ही दे सकता है जो उसके पास हो।  अगर आपके पास दुःख होगा तो आप औरो को दुखी ही बाट सकते हो और अगर आपके पास ख़ुशी है तो आप ख़ुशी बाट सकते हो तो आपको देखना है की आपके पास क्या है लोगो को बाटने के लिए। मैंने हमेशा एक बात मानी है अगर आपको कोई ऐसा दुःख है जो आपको पल-पल जीने नहीं देता तो मैं ये कहूंगा की रोज़-रोज़ मर-मर कर जीने से अच्छा है उस दुःख को एक बार अच्छे से झेल कर ख़तम कर दो।  कांटे के पैर में लग जाने पर हमें बहुत दर्द होता है और हम ठीक से चल भी नहीं पाते।  फिर हमारे पास दो तरीके होते हैं की या तो हम थोड़ा-थोड़ा दुःख झेलते रहे और ऐसे ही चलते रहे या फिर एक बार सारा दुःख झेल कर उस कांटे को निकल दे।  हो सकता है काँटा निकलने पर ज्यादा दुःख हो और कई दिन तक रहे पर कुछ नहीं बाद ऐसा होगा की उस दर्द का नामोनिशान मिट जायेगा।  अब ये आप पर निर्भर करता है की आप रोज़ दर्द सहना चाहते हो या एक बार में ख़तम कर देना चाहते हो।  जीवन इतना कठिन नहीं है जितना हम बना देते हैं और यहाँ एक बात ये याद रखने लायक है की सब कुछ आप अपनी मर्जी के जैसे नहीं चला सकते।  यानि आप जो कुछ करते है तो उम्मीद करते है की सब वैसा ही होगा जैसा आपने सोचा है पर वैसा ही हो ऐसा जरुरी नहीं है और ये वजह भी हमारे दुःख का कारण बन जाती है यहाँ सब कुछ खुद होता है बस आपको अपनी कोशिश करनी है फिर वैसा हो या न हो कोई बात नहीं।  कई बार हमारा 100% करना भी काफी नहीं होता और कई बार 10% करना भी काफी हो जाता है तो इसमें दुखी होने वाली कोई बात नहीं है।  सब कुछ चल रहा है और चलता रहेगा।  "मेरी ईश्वर से प्रार्थना है आप सब हमेशा खुश रहो" 




खुशी में तो हँस ही लेते हैं लोगो को दिखाने के लिये
बेवजह भी मुस्कुराओ कभी तो क्या बात हो
प्यार मिलने की चाहत में तो करते हैं प्यार सभी
बेवजह भी कोई प्यार करे तो क्या बात हो
रूठने पर तो फिर भी शायद मना ले कोई
रूठने से पहले भी कोई मनाये तो क्या बात हो
बोलने पर भी नहीं समझते हैं कुछ लोग दिल की बात
बिन बोले भी कोई समझ जाये तो क्या बात हो
सब कुछ लुटा देने पर भी होता नहीं कोई अपना
बिन कुछ करे भी कोई अपना हो तो क्या बात हो
अक्सर बहुत मिलते हैं हमे पाने के लिये रोने वाले
कोई हमारे साथ रोने वाला भी मिले तो क्या बात हो

Tuesday, March 9, 2021

दोस्ती और प्रेम


दोस्ती और प्रेम हमारे जीवन में दोनो ही बहुत मायने रखते है। लेकिन ये दोनो कभी भी सबके लिये समान्तर नहीं रह सकते। लोगो के लिये प्यार हमेशा ही दोस्तो से ऊपर रहा है। सबको ये ही लगता है की जितना हम प्यार में कर सकते हैं इतना लोग दोस्ती में नहीं कर सकते और शायद वो अपनी जगह सही भी हैं क्युकी वो दोस्ती में इतना नहीं कर सकते तो उनके लिये कोई करे तो उन्हे ये ही लगता है की इनका कोई स्वार्थ ही होगा वर्ना इतना कौन करता है। लेकिन अपवाद हर जगह हैं और मैं इतना भी जनता हूँ की ऐसा सिर्फ मैं अकेला नहीं हूँ। बस मुझे ऐसे लोग अभी तक नहीं मिले हैं। 

मुझमें भी शायद कोई गड़बड़ है या कहूँ की मेरी सोच औरो से बहुत अलग है। मैं जिन्हे सिर्फ जानता हूँ मैं उनके लिये भी इतना कर सकता हूँ जितना लोग प्यार में भी नहीं करते तो सोचो जिन्हें मैं जिन्हे अपना मानता हूँ मैं उनकी खुशी के लिये किस हद तक जा सकता हूँ ये अनुमान लगना भी मुस्किल है। यहाँ मेरा भी थोड़ा स्वार्थ है, मैं बदले में बस विश्वास, थोड़ा वक़्त और उनके जीवन में अपनी अहमियत चाहता हूँ। पर ये सब बहुत कीमती चीजे हैं सबसे इन्हे पाने की उमीद नहीं की जा सकती। मेरे साथ सबसे बड़ी दिक्कत ये है की जिसे मैं अपना मानता हूँ उनका दुःख मुझे अपने अंदर महसूस होता है।  मैं चाह कर भी उनके दुःख को अपने अंदर से निकल नहीं पाता।  मैं उन लोगो को छोड़ नहीं पाता, मेरे दिमाग में बार बार बस ये घूमता रहता है की वो दुखी हैं।  पर इतना किसी के लिए नहीं सोचना चाहिए और ना ही इतना करना चाहिए क्युकी लोगो को इसकी जरुरत नहीं है वो अपना ध्यान खुद रख सकते हैं, सबको ईश्वर ने दिमाग दिया है वो अपना अच्छा बुरा सोच सकते हैं, और सच तो ये ही है की उन्हें आपकी जरुरत होती भी नहीं हैं क्युकी वो अपनी ज़िन्दगी में उन लोगो को चाहते हैं जिन्हे वो अपना मानते या जिनसे वो प्यार करते हैं।  आप किसी के लिए क्या करते है या अपने किसी के लिए क्या किया है ये कोई मायने नहीं रखता।  मायने ये रखता है की जिससे आप प्यार करते है वो आपके लिए कितना कर रहा है।  जिससे आप प्यार करते है उसका थोड़ा सा कुछ करना भी आपके लिए जहाँ भर के करने से ज्यादा है।  जब आप किसी के लिए बिना स्वार्थ के इतना करते हैं तो सबसे पहले ये ही सवाल आता है की क्यों कर रहा है ये इतना ? क्या चाहिए इसे ? जरूर कोई स्वार्थ होगा।  उस वक़्त आपने जो किया वो सब गलत साबित हो जाता है क्युकी दोस्ती में कोई इतना नहीं करता।  बदले में हमें वापिस क्या मिलता है ? बस दुःख और तिरस्कार।  मुझे भी समझना चाहिए सबकी अपनी सोच है, सब अपना सोच सकते हैं।  मुझे सीखना होगा लोगो को उनके हाल पर छोड़ना, पर क्या मैं ऐसा बन पाऊंगा ?

लोग हमारे बारे में अच्छा सोचते हैं या बुरा, या वो हमसे दूर हो गए हैं तो क्या हमें इसका दुःख होना चाहिए ? सायद नहीं क्युकी हमने वो किया जो हमें ठीक लगा और उन्होंने वो किया जो उन्हें ठीक लगा।  आखिर हमारा क्या गया ? हमें ख़ुशी ही होना चाहिए की हमने जितना भी किया अच्छा ही किया, कुछ बुरा नहीं किया, जितने वक़्त भी रहे बस उन्हें खुश रखने की कोशिश की तो इसमें दुःख होने वाली क्या बात हैं और रही बात किसी को खोने की तो हमारा क्या गया एक ऐसा इंसान जिसे हमारी कोई अहमियत नहीं थी, जो हमसे ढंग से बात तक ना करता था, जिसे हमारी कोई फ़िक्र नहीं थी, जिसे हमारा दुःख कभी दिखाई ना दिया, जिसे हमारे होने ना होने से फर्क ही ना पड़ता था, जो हमसे दूर रह कर भी बहुत खुश है।  और ये तो अच्छी बात है ना की वो खुश है ये ही तो हमारी हमेशा कोशिश रहती थी की वो खुश रहे और वो खुश हैं।  इंसान गलती कर सकता है लेकिन ईश्वर अच्छा करने का सिला बुरा नहीं देगा।  इसका मुझे पूरा विश्वास है।   

आध्यात्मिक अध्यन किया जाए तो ये सब हमारे पिछले जन्म का बकाया होता है।  सायद मैं पिछले जन्म में बहुत ही बुरा इंसान रहा होऊंगा तभी मैंने अपने ऊपर इतना कर्जा कर रखा है, मैं बस अपने पिछले जन्म का कर्जे ही उतार रहा हूँ।  हम जिन भी लोगो से इस जन्म में मिलते है बेसक कुछ वक़्त के लिए ही मिले, उन सबसे हमारा कुछ न कुछ बकाया होता है जो इस जन्म में चुकाना है।  मैंने अपने जीवन में जितना भी लोगो के लिए किया और बदले में बेसक मुझे कुछ ना मिला हो सायद वो पिछले जन्म का बकाया ही था तो चुका दिया।  पर कहते हैं की अगर हमारे कर्म पूरे ना हुए हों तो अगले जन्म में हमें फिर से अपना कर्जा चुकाना पड़ेगा और उन्ही लोगो से फिर से मिलना पड़ेगा जिनसे इस जन्म में मिले हैं।  मैं ईश्वर से बस ये ही प्रार्थना करूँगा की बस जो भी हो किसी के साथ मेरा इस जन्म में ही पूरा हो जाये।  पर इस बात का पता कैसे चले की मैंने इस जन्म में अपना कर्जा चुकाया है या कर्जा चढ़ाया हैं?

Friday, February 5, 2021

रिश्ते, अकेलापन और दुख

रिश्ते कहने के लिये तो बहुत छोटा शब्द है किन्तु इसको जितना समझा जाये उतना ही कम है। जब हम पैदा होते हैं तब से मरने के सफ़र तक हम रिश्तों में बंधे रहते है। कुछ रिश्ते तो हमारे जन्म के साथ ही बन जाते हैं पर कुछ रिश्ते वक़्त के साथ खुद-ब-खुद बनते और टूटते चले जाते हैं।

हमारे जीवन में रिश्तो की एहमियत बहुत ही ज्यादा होती है। हमें रिश्तो से खुशी, प्यार, अपनापन, साथ और सहयोग मिलता है। हम अपना जीवन बिना रिश्तो के कल्पना भी नहीं कर सकते। किन्तु जीवन में कई मोड़ ऐसे आते जब सब रिश्तो के बावजूद भी हम खुद को अकेला पाते हैं और हमें लगता है की हमारे सुख-दुख बाटने के लिए कोई नहीं है। कुछ हम खुद को अकेला मेहसूस करते हैं और कुछ हम खुद को अकेला कर लेते हैं। ये अकेलापन दुख में बदल जाता है और ये दुख बढ़ता ही जाता है। कई बार ये दुख इतना बढ़ जाता है की हमारे मन मे हमेशा गलत और बुरे ख्याल ही आते रहते हैं। जहाँ तक मैने समझा है मुझे हमेशा ये ही लगता है की हमें अकेलापन इसलिये नहीं मेहसूस होता की हम अकेले हैं बल्कि अकेलापन इसलिये मेहसूस होता है की जिसका साथ हमें चाहिये वो हमारे साथ नहीं है। किसी एक खास इंसान का साथ पाने की अभिलाषा हमें सबसे दूर कर देती है। हम हमेशा इसी दुख में जीने लगते है की ऐसा क्यूँ हो रहा है, हम उस इंसान के लिये इतना करते है वो हमें क्यूँ अपना नहीं समझता। या हम इश्वर से शिकायत करते रहते हैं की जब वो इंसान हमारे नसीब में नहीं था तो हमें मिलया ही क्यूँ? उस एक इंसान की बेरुखी की वजह से हम सभी से बेरूखा सा बर्ताव करने लगते हैं और ये दुख व बेचैनी बढती ही जाती है। हम कुछ अच्छा सोच ही नहीं पाते, हमें बस ये अभिलाषा रहती है की किसी भी तरह से उस इंसान से बात हो जाये और जब उस इंसान से बात हो जाती है तो हमें सुकून भी मिल जाता है पर कितनी देर के लिये?

रिश्तो के बन्धन से निकलना इतना असान भी नहीं होता। इंसान जीता भी है तो पल-पल मर-मर कर। जाने-अनजाने में हम अपना कितना ही जीवन दुख में बिता देते है, अखिर क्यूँ? ऐसी क्या बात है जिसकी वजह से हम खुद अकेले खुश नहीं रह सकते?

हमें अपने जीवन में कुछ बदलाव लाने की जरुरत है, अखिर पूरी उम्र तो हम दुखी रह कर नहीं बिता सकते और इस बदलाव की सुरुवात आज से और अभी से करनी होगी। सब कुछआसान नहीं है और ना एक एक दिन में होने वाला है किन्तु एक दिन जरुर होगा। बस आपको सुरुवात करनी है।

हमारा दिमाग बड़ा ही शक्तिशाली है और ये बहुत कमजोर भी है। दिमाग का कमजोर होना है या शक्तिशाली ये निर्भर करता है हमारी सोच पर। अगर हम बस गलत और नाकारात्मक ही सोचेंगे तो ये बहुत कमजोर हो जायेगा और हमें भी कमजोर करेगा किन्तु यदि हम अच्छा और सकारत्मक सोचे तो ये बहुत ही शक्तिशाली हो जायेगा और आपको भी शक्तिशाली बना देगा। किन्तु प्रशन वही है की ऐसा किया कैसे जाये? दिमाग मे तो खुद-ब-खुद ही नाकारात्मक विचार आते हैं जिन पर हमारा वश ही नहीं चलता। यदि दिमाग हमारे वश में हो तो अच्छी बात है पर अगर हम दिमाग के वश में तो ये बहुत ही बुरी बात है। जब हम दिमाग के वश में होंगे तो दिमाग हमसे वही सब करवाएगा जो वो चहता है और अगर दिमाग हमारे वश मे होगा तो हम उससे वही करवा सकते हैं जो हम चाहते हैं।

हमें अच्छी बातें ज्यादा देर तक याद नहीं रहती किन्तु बुरी बातें हमें हमेशा याद रहती हैं। कई बार तो बुरी बातें हमारे मन में इतना घर कर जाती हैं की हम पूरी उमर भी उन बातों को भूल नहीं पाते। ये कमी हमारी ही है, हमने अपने दिमाग को ही अब ऐसा बना लिया है। हमें अपने दिमाग पर काबू पाना है और उसके लिये सबसे पहले आपको ये समझना होगा की कोई भी बात हो वो सिर्फ काल्पनिक है और सिर्फ आपके मन के विचार हैं या ये हक़ीक़त है। आपको अपनी एक आदत डालनी है। आपको अपने दिमाग के साथ बहस करनी है। जब भी आपको कोई बात बुरी लगती है और दिमाग कहता है की ये गलत हुआ या उसने ये गलत किया है, उसने मेरा विश्वास तोड़ा है तो आपको अपने दिमाग से सवाल करने हैं की ठीक है जो हुआ सो हुआ, क्या तुझे पक्का पता है?दिमाग कहेगा की हाँ। फिर तुम्हे सवाल करना है की कोई सबूत है। दिमाग कहेगा की नहीं या हाँ जो भी कहे। फिर आपको पूछना है की अगर वो ऐसा नहीं करता तो आपके जीवन में क्या बादल जाता या उसने ऐसा किया है तो आपके जीवन में ऐसा क्या बदल गया जिसकी वजह से परेशान है। आपको अपने दिमाग से जब तक बहस करनी है जब तक आपके सवालो के जवाब दिमाग के पास ना हो। ऐसा करने से शायद आरम्भ में कोई खास फर्क ना पड़े पर आपको हमेशा के लिये ही अपनी ये आदत डालनी पड़ेगी। पर जैसा दिमाग कहे वैसा ही आपको नहीं मान कर बैठना है।

हमें दुख दूसरो की वजह से कम और अपनी अभिलाषा और इच्छा की वजह से ज्यादा मिलते है तो दूसरा काम हमें बस वही करना है। हमें अपनी इच्छाओं पर काबू पाना है। वो भी हमारे लिये ऐसा करे, हम उनके लिये इतना करते हैं वो भी करें। हम उनके दुख में हमेशा साथ थे वो भी हो। ये सब बातें भी हमारे दुख की एक वजह हैं। हमें खुद पर भरोशा करना है। हमें अपने मन को समझना है की कोई हमारे साथ हो या ना हो हमें फर्क नहीं पड़ता और ना हमारा जीवन बादल जाता है। कुछ भी हो, कोई भी हो हमेशा आपके साथ नहीं रहने वाला है किन्तु आप का अपने ऊपर विश्वास हमेशा रहेगा बस आपको वो विश्वास खुद पर करना है।

अक्सर हम वही तो बाटते हैं जो हमारे पास सबसे ज्यादा होता है फिर चाहे वो खुशी हो या गम। खुश रहो हरदम।।


ग़ज़ल

तुझसे तो फिर भी मिल लेता हूँ खवाबों में,
खुद से ही मिले मुझे जमाना हो गया।
अब कहाँ रहा ये पहले जैसा दिल भी,
अब ये दिल खंडर सा वीराना हो गया।
लोगो से क्या शिकवा अगर साथ छोड़ दिया,
अंधेरों में अपना साया भी बेगाना हो गया।
रूठा-रूठा सा है यार तो रहने दो खफा,
रूठने-मनाने का रिवाज़ जरा पुराना हो गया।
खुद की खुशी के लिये टूटे वादे तो टूटने दो,
अब कौन सा जरुरी वादो को निभाना हो गया।
जब भी बयाँ करता हूँ मैं अपना हाल-ऐ-दिल,
लोग कहते हैं ये 'साहिल' भी दीवाना हो गया।

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आज़ाद

देखता हूं परिंदों को उड़ते हुए सोचता हूँ किस कदर आजाद हैं ये इन्हें बस अपनी मौज में जीना है ना कोई रोकता है इन्हें ना ही किसी की फिक्र है ना...