Wednesday, August 4, 2021

तराशो खुद को

एक सड़क के किनारे पड़ा पत्थर हमेशा ठोकरे खाता है वहीं एक मंदिर में रखा पत्थर पूजा जाता है तो क्या फर्क होता है एक सड़क के किनारे पड़े पत्थर में और एक मंदिर में रखे पत्थर में?
 
जी हाँ, सिर्फ तराशने का फर्क होता है। 

जो जितना अच्छा तराशा जाता है उसकी उतनी ही कीमत बढ़ती जाती है।

हम सब पत्थर ही तो है। अब आप देखो, आपको कौन सा मुकाम हासिल करना है? और जो मुकाम हासिल करना है उसी हिसाब से खुद को तराशना होगा।
 
हाँ बिल्कुल, चोट तो बहुत खानी पड़ेगी, बहुत कुछ झेलना भी पड़ेगा, हो सकता है कई बार ऐसी चोट मिले जो आपको और चोट सहने के लिये मना कर दे पर याद रखो अगर अब ये सब झेल लिया तो जिंदगीभर ठोकर नहीं खानी पड़ेगी। पर अगर आप ये सब झेल जाते हो तो निश्चित ही एक दिन आप किसी मंदिर में अपनी शोभा बढा रहे होंगे।


तो बहुत सारी शुभकामनाएँ।

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