किस बात का है भ्रम तुझे, किस बात का गुमान है
मिट्टी का है तन तेरा, धूल सी तेरी पहचान है
जी ऐसे रहा है जैसे कभी जायेगा ही नहीं
मत भूल तेरी आखिरी मंजिल ही शमशान है
किस बात का है भ्रम तुझे, किस बात का गुमान है
कच्चे धागे से हैं रिश्ते तेरे, जो पल में टूट जाने हैं
कितने भी तेरे अपने हो एक दिन सब छूट जाने है
बस तेरे अपने कर्म ही है जो तेरे साथ जाने है
इतने सब के बाद भी तू, बनता कितना अंजान है
किस बात का है भ्रम तुझे, किस बात का गुमान है
क्यों याद करेगा जमाना, ऐसा क्या काम किया ?
इसका लूटा, उसका छीना, कितने दिल दुखाए हैं
जाने कितने पाप करके तूने अपने अंदर छुपाए हैं
मिट्टी का बना है तू, एक दिन मिट्टी में मिल जाना है
भूल जाता है तू की आखिर में तेरा भी यही अंजाम है
किस बात का है भ्रम तुझे, किस बात का गुमान है
मिट्टी का है तन तेरा, धूल सी तेरी पहचान है
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