हो वफ़ा की उम्मीद तो कुछ बात करूँ
वरना जाने दो क्यों वफ़ा की बात करूँ
तुम बस मेरे हो गर ये यकीन दिला दो,
क़यामत तक मैं मोहब्बत का इज़हार करूँ
तुम्हें मुझसे मोहब्बत नहीं है तो फिर जाने दो,
मैं ही क्यों इस मोहब्बत को बार बार करूँ
क्यों साथ ढूंढता हूँ मैं इस मतलबी शहर में
यहाँ रह कर अब क्यों मैं वक़्त बर्बाद करूँ
मंजिल दूर नहीं मुझे बस पहुंच ही जाना है
और कितनी लगेंगी ठोकरें अब क्यों फिक्र करूँ
चलना हो साथ मेरे तो खुद ही आ जाओ करीब,
मैं वो इंसान नहीं रहा जो किसी का इंतेज़ार करूँ
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