चलो साथ मेरे,
जब तक मंजिल ना मिले,
दो कदम तुम चलो
दो कदम हम चले
यूँ ही सुबह गुजर जाए
बस यूँ ही शाम ढले
गर्म धूप में हम
बन कर ठंडी छाव चले
फिर वो मंजिल की दूरी
कभी दूर ना लगे लगे
पकड़ कर एक दूसरे का हाथ
जब कभी हम साथ चले