Thursday, December 12, 2013

जिसे भी चाहता हूँ मैं

 

जिसे भी चाहता हूँ मैं, बस टूट कर चाहता हूँ। 
फिर होता है ये कि, मैं खुद टूट जाता हूँ।
अगर कभी दिल करता है कि कोई मनाये मुझे,
मैं खुद से ही लड़ता हूँ और रूठ जाता हूँ।
सपने में भी आये कोई, अब ये गवारा नहीं मुझे, 
मैं बस तेरा दीदार पाना चाहता हूँ।
यूँ तो पता है मुझे कि तू मेरी कभी हो नहीं सकती, 
पर फिर भी मैं बस तुझे अपना बनाना चाहता हूँ

 

Featured Post

आज़ाद

देखता हूं परिंदों को उड़ते हुए सोचता हूँ किस कदर आजाद हैं ये इन्हें बस अपनी मौज में जीना है ना कोई रोकता है इन्हें ना ही किसी की फिक्र है ना...