Friday, January 11, 2013

तड़प


सूख चुकी हैं आँखें, पर मैं रोना चाहता हूँ.
लगा कर किसी को गले से, आंसू बहाना चाहता हूँ.
रह रह कर क्यों गुजरा जमाना याद आता है,
भूल कर सब बातों को अब मुस्कुराना चाहता हूँ.
गैर से क्या करू शिकायत वो तो गैर ही रहे,
अब मैं खुद को भी एक बार अजमाना चाहता हूँ.
कोई लौटा दे गर मेरा गुजरा हुआ वक़्त,
मैं अपने बचपन में लौट जाना चाहता हूँ.
थक चुका हूँ जिंदगी में भाग भाग कर,
अब कुछ देर बैठ कर सस्ताना चाहता हूँ.
नींद भी नहीं आती है अब रातों को,
मैं हमेशा के लिए अब सो जाना चाहता हूँ.

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