उससे बिछड़ कर हाल कुछ ऐसा हुआ,
मर भी गया मैं, और जिन्दा भी रहा !
रहता हूँ हमेशा भीड़ और महफ़िल में,
पर फिर भी मैं सायद तनहा ही रहा !
उसके बाद भी बने हैं, बहुत से अपने,
पर इस दिल का क्या जो सिर्फ उसका ही रहा !
दिल के हर कोने में उसकी याद बसी है,
बस वो मेरा अपना अब अपना नहीं रहा !
रिश्ते अब सिर्फ नाम के रह गए हैं,
अफ़सोस होता है की अब वो वक़्त नहीं रहा !
खुदा से की जब शिकायत इस बात की,
उसने भी कह दिया - इन्सान अब इन्सान नही रहा !
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