Friday, February 3, 2023

आज़ाद



देखता हूं परिंदों को उड़ते हुए
सोचता हूँ किस कदर आजाद हैं ये
इन्हें बस अपनी मौज में जीना है
ना कोई रोकता है इन्हें
ना ही किसी की फिक्र है
ना है तमन्ना कुछ पाने की
ना कल की चिंता ना फिक्र ज़माने की
निकल तो जाते हैं खाने की तलाश में
मगर लौट आते हैं शाम ढलते ही
देखता हूँ खुद को तो एहसास होता है
कुछ पाने की तमन्ना में हम बंधे हुए हैं
ना फुर्सत मिलती है काम से
ना कुछ वक़्त अपने पास होता है
ना अपनी मर्जी के ही हम मालिक हैं
सुबह से शाम हुई और शाम से सुबह हो गई
हमारी जिंदगी ना जाने कहाँ खो गई
हमसे तो बेहतर ये परिंदे हैं
जो अपनी मर्जी के मालिक और आज़ाद हैं
एक हम हैं जो कठपुतली की तरह नाचते हैं
आज से ही होने लगती है हमें कल की फिक्र
जीना है मुझे भी इन परिंदों की तरह
गुलामी की जंजीरों से आज़ाद हो कर
उड़ना है इन परिंदों की तरह बेफिक्र हो कर
लौट आना है शाम ढलते ही अपनों के पास
हँसना है मुझे भी दिल खोल कर विक्षिप्त की तरह
सोना है मुझ गहरी नींद में दुनिया से बेफिक्र हो कर
चिल्लाना है मुझे जा कर वादियों में कहीं
कुछ वक़्त के लिये बस वहीं का हो जाना है
करना है शुक्रिया अदा मुझे इस जिंदगी का
मुझे भी जिंदगी के हर लम्हे को जीना है
-साहिल

Friday, November 11, 2022

तेरा शहर भी अब



तेरा शहर भी अब थोड़ा वीराना सा लगता है
वो गुजरा हुआ किस्सा पुराना सा लगता है
बड़ा नाज़ हुआ करता था दोस्तो पर हमें
वो भी अब गुजरा हुआ जमाना लगता है
धीरे धीरे ही सही पर अब बदलेंगे हम भी
नहीं जरूरी सब रिश्तों को निभाना लगता है
कहते हैं सब मतलबी मुझे तो कहने दो
मतलबी तो मुझे भी ये जमाना लगता है
'साहिल' से ही रखते हैं अब उम्मीदें सारी
मुश्किल अब फिर से बिखर जाना लगता है

Thursday, September 8, 2022

दो वक्त की रोटी की खातिर जाने क्या कुछ गंवा दिया



वक्त खोया, सुकून खोया, सारा जीवन लूटा दिया दिया
दो वक्त की रोटी की खातिर जाने क्या कुछ गंवा दिया
अपनो से दूर हुए, जाने कितने मजबूर हुए
साथ छूटा, यार छूटे, बहुत कुछ है जो भुला दिया
दो वक्त की रोटी की खातिर जाने क्या कुछ गंवा दिया

ना खुशी मानने का वक्त है ना रोने की ही फुर्सत है
घर की जिम्मेवारियों ने हमे कितना नीचे दबा दिया
दिन अपना गुलाम हुआ कुछ पाने को चाहत में
रात आई तो दिन के बोझ ने थक कर सुला दिया
दो वक्त की रोटी की खातिर जाने क्या कुछ गंवा दिया

जाने कितने सपने थे, जाने क्या कुछ करना था
जाने कितनी खुवाहिशें थी वक्त ने सब छुड़ा दिया
निकलते है अब बस शाम होने के इंतजार में
इस छोटी सी जिंदगी ने ना जाने क्या क्या सीखा दिया
दो वक्त की रोटी की खातिर जाने क्या कुछ गंवा दिया
-साहिल

Monday, June 20, 2022

भ्रम


सब कुछ खो कर कुछ पाने का भ्रम था
देख मेरी जान मुझे तेरे होने का भ्रम था
कसम टूटी, विश्वास टूटा और भ्रम भी टूट गया
क्या ले कर आया मैं, क्या पीछे छूट गया
फरेबी को सब कुछ मिला, सच्चो को मिला फरेब
ईश्वर से कैसे छिपाओगे अपने सारे ऐब
जाना एक दिन सबने है, क्या ले कर जाओगे
किस तरह फिर उस ईश्वर से नज़रे मिलाओगे
सुंदर-सुंदर चेहरों में गजब की मक्कारी देखी है
जो बनते थे भोले बहुत उनकी होशियारी देखी है
मतलब के हैं रिश्ते सारे, मतलब का है अब जमाना
तुम भी रखो मतलब सबसे, दिल ना किसी से लगाना

Friday, May 13, 2022

किस बात का है भ्रम तुझे



किस बात का है भ्रम तुझे, किस बात का गुमान है
मिट्टी का है तन तेरा, धूल सी तेरी पहचान है
जी ऐसे रहा है जैसे कभी जायेगा ही नहीं
मत भूल तेरी आखिरी मंजिल ही शमशान है
किस बात का है भ्रम तुझे, किस बात का गुमान है

कच्चे धागे से हैं रिश्ते तेरे, जो पल में टूट जाने हैं
कितने भी तेरे अपने हो एक दिन सब छूट जाने है
बस तेरे अपने कर्म ही है जो तेरे साथ जाने है
इतने सब के बाद भी तू, बनता कितना अंजान है
किस बात का है भ्रम तुझे, किस बात का गुमान है

क्यों याद करेगा जमाना, ऐसा क्या काम किया ?
इसका लूटा, उसका छीना, कितने दिल दुखाए हैं
जाने कितने पाप करके तूने अपने अंदर छुपाए हैं
मिट्टी का बना है तू, एक दिन मिट्टी में मिल जाना है
भूल जाता है तू की आखिर में तेरा भी यही अंजाम है
किस बात का है भ्रम तुझे, किस बात का गुमान है
मिट्टी का है तन तेरा, धूल सी तेरी पहचान है

Thursday, March 24, 2022

जो गुजर गया उसे जाने दो

 


आएगा वो वक़्त भी कभी
जब तुम्हारा अपना भी तुम्हारा ना होगा
दुख तो होगा तुम्हें बहुत लेकिन
कोई तुम्हारा भी सहारा ना होगा
अगर आए मेरी याद तो बस इतना याद रखना
तुम भी रहोगे, मैं भी रहूँगा
ये दिल तो रहेगा पर तुम्हारा ना होगा
दिल उतना ही दुखाओ किसी का
कि जब खुद पर बीते तो सह सको
क्योंकि वक़्त के सामने किसकी चली है
वक़्त के आगे किसी का गुजारा ना होगा
दिल से उतरने वाले फिर कहाँ बस्ते हैं दिल में
ये दोस्ती का खेल हमसे फिर दुबारा ना होगा
जिन्होंने कदर ना कि कभी नजदीकियों की
उनका साथ रहना भी अब गंवारा ना होगा
'साहिल' पर आ कर जिसने साथ छोड़ दिया
वो शख्स कभी भी तुम्हारा ना होगा

Monday, January 10, 2022

दोस्त

मेरी एक बहुत अच्छी दोस्त थी। बहुत अच्छी लड़की थी, साफ दिल की, छल-कपट से दूर सीधी-साधी। वो मुझसे 10 मिनट मिलने के लिये आधा घन्टा इन्तजार किया करती थी। हमेशा मेरे लिये कुछ ना कुछ खाने को ले आया करती थी। मुझे कहने की देर थी की मेरा किस चीज़ को खाने का मन कर रहा है और वो पूरी मार्किट देख लिया करती थी पर मेरे लिये लाया जरुर करती थी।

सब कुछ ठीक था। बस उसकी एक आदत थी की वो छोटी छोटी बातों पर नाराज हो जाया करती थी। कभी कभी मैं मना लिया करता तो कभी कभी खुद ही मान जाया करती। कई बार तो ऐसा हुआ की मेरी कही बात को गलत तरीके से समझा और नाराज हो गयी। दोस्त ही तो थी तो मैने भी इतना ध्यान नहीं दिया या कह लू मुझे इतना फर्क नहीं पड़ा। फिर खुद ही मान भी जाती और मुझसे पूछती की मेरे बात ना करने से तुम्हे फर्क नहीं पड़ता ना? मैं बस मुस्कुरा कर जवाब को टाल देता। उस वक़्त मेरे बहुत से दोस्त हुआ करते थे इससे ज्यादा मैं उन्हे मनता था और इससे उनकी तारीफ भी करता था और ये चुप रहती थी। एक दो बार तो ऐसा हुआ की उनके लिये मैने इसे अन्धेखा किया। वो मेरे लिये सबको इग्नोर करती थी और मैं उसे ही इग्नोर कर देता था। फिर एक दिन वो ऐसी रूठी की मनाने से भी नहीं मानी। मैंने भी इतनी तवज्जो नहीं दी और सच कहूँ तो उस वक़्त मुझे इतना फर्क भी नहीं पड़ा। बहुत से दोस्त थे मेरे तो फर्क नहीं पड़ा। मैने उसके लिये कभी ना अच्छा सोचा और ना बुरा। अखिर वो सिर्फ एक दोस्त ही तो थी। उसे मुझसे प्यार तो नहीं था पर उसकी दोस्ती प्यार से कम भी नहीं थी।

उसने मेरा नम्बर कभी डिलीट नहीं किया और ना मैने किया। मैने कोशिश की उससे बात करने की लेकिन या तो वो जवाब ना देती या फिर बोलती की मेरा मन नहीं करता अब किसी से बात करने का। अकेले रहना अच्छा लगता है और तुमसे कोई शिकायत नहीं है, तुम बहुत अच्छे इन्सान हो पर अब हम दोस्त नहीं बन सकते।

जब वक़्त बदला और जिनके लिये मैने इसे इग्नोर किया उन्होने मुझे इग्नोर किया तो एहसास हुआ की मैने भी तो ये ही किया था।  मैं जिन्हे खास समझता था उनके लिये जब मैं सिर्फ ऑप्शन रह गया तो समझ आया की दुख भी होता है। सबको अपने कर्म भोगने ही पड़ते हैं। अब जब ना मेरे इतने दोस्त है और ना किसी से इतनी बात होती है। अकेला होता हूँ तो अक्सर सोचता हूँ की कितनी अच्छी थी वो मेरे लिये। कौन सोचता है बिना स्वार्थ के इतना किसी के लिये। कभी समझ ही नहीं पाया की प्यार ना सही पर वो भी मुझसे वैसी ही दोस्ती की उमीद करती होगी जैसी वो मुझसे रखती थी पर मैने उसकी कदर तक ना की। किसी ने सच ही कहा है किसी भी चीज़ या इन्सान की कदर उसके मिलने से पहले और उसके खोने के बाद ही होती है। आज जब भी मैं उसके बारे में सोचता हूँ तो एक बहुत अच्छी सी फीलिंग आती है। जो मुझे एहसास दिलाती है की मैं उसके लिये बहुत खास था।

कभी उसके बारे में कुछ कहा ही नहीं। आज दिल कर रहा है उसका धन्यवाद करुँ और माफी माँगू जो मैने गलत किया।

धन्यवाद, आज भी तुम्हारी याद एक प्यारी सी फीलिंग ले कर आती है जिसको बताने के लिये मेरे पास शब्द नहीं है। और मैं माफी मांगता हूँ अपने गलत व्यवहार के लिये, तुम्हें ना समझने के लिये।

आप सब ध्यान रखिये अपना और खास कर उसका जो आपको खास समझता है, बहुत मुश्किल से मिलते हैं ऐसे लोग।

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