हमारे पड़ोस में एक भैया रहते थे। वो बहुत अच्छे थे, हमेशा सबकी मदद करते थे, उनकी हमेशा ये ही कोशिश रहती थी की उनकी वजह से कभी किसी को दुख ना पहुंचे। कई बार तो ऐसा हुआ की उन्होने दूसरो की परेशानी दूर करने के लिये खुद के बारे में भी नहीं सोचा। हमेशा ही दूसरो के लिये जीते थे। फिर एक दिन, एक दुर्घटना में उनकी मृत्यू हो गयी। सभी अड़ोसी-पड़ोसी जमा हुए, सब बस ये ही बात कर रहे थे की बहुत अच्छा इंसान था, कभी किसी से कोई लडाई-झगड़ा नहीं किया, सबकी मदद करता था। क्रियाकर्म के बाद सब अपने-अपने घर लौट गए। बस एक-दो दिन चर्चे हुए पर फिर सब भूल गए, अब तो किसी को याद भी नहीं आती।
हमारे पड़ोस में फिर दूसरे भैया आये। वो बस खुद के बारे में सोचते थे। हमेशा खुद खुश रहते। मर्जी होती तो किसी की मदद कर देते नहीं तो साफ मन कर देते। वो मानते थे की पहले इंसान खुद खुश रहना चाहिये बाकी दुनिया बाद में है। किसी से इन्हे कोई खास मतलब नहीं था। किश्मत है कुछ समय बाद किसी बिमारी की वजह से इन भैया की भी मृत्यू हो गयी। सभी अड़ोसी-पड़ोसी फिर जमा हुए, अब भी सब बस ये ही बात कर रहे थे की अच्छा इंसान था बस सबसे पहले अपने बारे में सोचता था पर कभी बुरा नहीं किया किसी का, खुद में खुश रहता था। फिर क्रियाकर्म के बाद सभी अपने-अपने घर लौट गए। इन भैया के भी बस एक-दो दिन चर्चे हुए पर फिर सब भूल गए, अब तो कोई दोनो में से किसी को याद भी नहीं करता है।
कहानी तो खतम हो गयी पर एक सवाल रह गया। दोनो में से कौन सा ज्यादा सही रहा और कितना फर्क पड़ा दोनो के अलग-अलग व्यवहार से? और उससे भी जरुरी ये है की आप कौन से वाले के जैसे हो?
खुश रहें, मस्त रहें, व्यस्त रहें।