Saturday, April 25, 2015

जिंदगी एक संघर्ष


मैंने अपना वजन किया, मसीन से उतरने के बाद मैंने उस बच्चे को 2 रूपये दिए और जैसे ही पलट कर जाने लगा अचानक वो बच्चा बोला।
भैया आप रोज़ अपना वजन क्यों करते हो ?

मैंने कहा - बस ऐसे ही, मैं अपना वजन बढ़ा रहा हूँ ना इसलिए, रोज़ रोज़ देखने से पता चल जाता है की वजन बढ़ रहा है या घट रहा है। मेरे पास मशीन तो है नही इसलिए यही देख लेता हूँ।
मैं वहाँ से चल दिया पर मेरे दिमाग में बहुत सी बाते घूम रही थी। क्या मैंने इस बच्चे से सच कहा है?

आज से 2 हफ्ते पहले मैंने इस बच्चे को देखा था, इसकी उम्र 10 या 12 साल होगी। गंदी सी पेंट - शर्ट पहने। आगे एक वजन तोलने की मशीन रखी हुई है। जिस पर वजन तोलने के ये 2 रूपये लेता है।

मैंने जब भी इस बच्चे को देखता हूँ तो मुझे दुःख भी होता है और इस पर गर्व भी होता है। इतनी छोटी सी उम्र में अपनी जिम्मेदारी निभा रहा है। तब से पता नही मेरे मन में क्या आया और मैं रोज़ अपना वजन करने लगा। मैं रोज़ अपना वजन तौलता हूँ, इसे 2 रूपये देता हूँ और चला जाता हूँ।

जो बच्चे भीख मांगते है मुझे उन पर ना दया आती है और ना दुःख होता है। पर इस बच्चे को देख कर मुझे थोड़ा दुःख भी होता है पर उससे ज्यादा उस पर फक्र होता है। क्युंकि भीख मांगने वाले बच्चो में और इसमें एक बड़ा अंतर है। भीख मांगने वाले बच्चे अगर 100 से भीख मांगे तो उन्हें 1-- से मिल ही जाती है, 100 से मांगे तो 10-15 दे ही देते है और अगर 1000  से मांगते होंगे तो उन्हें 100 भी दे देते होंगे। पर इस बच्चे को दिन में कितने मिलते होंगे ? कितने लोग दिन में अपना वजन तौलते होंगे? ये भीख नहीं मांगता इसलिए पता नही इसके पास खाने के लिए भी पैसे हो पाते होंगे या नहीं।
मैं रोज अपना वजन तौलता हूँ और इसे 2 रूपये देता हूँ, इससे ना उसका कोई फायदा होता होगा और ना मेरा कोई नुकसान होता है। पर मैं सोचता हूँ कि अगर वहाँ से निकलने सभी व्यक्ति अपना वजन करके उसे 2 रूपये दें तो उसका महनत करने में और अधिक विश्वास बढ़ेगा। वरना हो सकता है वो भी भीख मांगने लगे। भीख मांगने वाले बच्चो की तादाद ज़्यादा है किन्तु महनत करके अपना पेट पालने वाले कम ही होते हैं, हमें ऐसे बच्चों को सहयोग करना चाहिए। जिससे उन्हें जीना के लिये एक अच्छा मार्ग मिल सके।

Monday, April 20, 2015

हमने कांटों में


हमने कांटों में फूलों को खिलते देखा है
अच्छी बातों का भी मतलब बदलते देखा है
जो खाते थे कसम, हमेशा साथ निभाने की
हमने उन लोगों को भी बदलते देखा है
अब भी गुमां रखते हैं हम उसके लौट आने का
हमने पत्थर दिल को भी पिघलते देखा है
तुम भी तड़पोगे एक दिन हमारे लिए
हमने भी किस्मत को बदलते देखा है

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देखता हूं परिंदों को उड़ते हुए सोचता हूँ किस कदर आजाद हैं ये इन्हें बस अपनी मौज में जीना है ना कोई रोकता है इन्हें ना ही किसी की फिक्र है ना...