Monday, July 14, 2014

फिर दिल लगाने की सजा


फिर दिल लगाने की सजा हमने कुछ ऐसे पायी है, 
करवटे बदल-बदल कर पूरी रात बितायी है। 
दिल से किसी को चाहने की बस सजा ही मिलती है,
ये बात फिर दिल टूटने के बाद समझ में आई है। 
उसे फर्क नहीं पड़ता मेरे होने या न होने से, 
जिसके यादे मैंने अपनी धड़कनो में बसाई है। 
क्या मिला किसी को अपनी जान से भी ज्यादा चाहने से, 
गम और यादो की दौलत हमने तोहफे में पायी है।  

No comments:

Post a Comment

Featured Post

आज़ाद

देखता हूं परिंदों को उड़ते हुए सोचता हूँ किस कदर आजाद हैं ये इन्हें बस अपनी मौज में जीना है ना कोई रोकता है इन्हें ना ही किसी की फिक्र है ना...